आदमी हो या पायजामा
यार तुम आदमी हो या पायजामा
तुम्हें क्यों समझ में नहीं आता है।
बार बार तुम इस राजनीति के,
चक्कर में आ जाता है।
ना तो पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़े हैं।
ना ही गैस के हमें दाम रुलाता है।
फ़ख्त तुम गरीब हो,
यही तुम्हें बार बार रुलाता है।
दारू पी, मुर्गा खा।
पाँच-पाँच सौ का नोट ले जा।
मजे कर अपनी बीबी से लड़
क्यों मंहगाई मंहगाई चिल्लाता है।
अरे!रोना तेरे किस्मत में है।
नाहक़ ही हमें सताता है।
बेहतर है कि तुम खुदकुशी कर लो,
यू भी तेरी जिंदगी बहुत सस्ती है।
तेरी यहाँ पर क्या हस्ती है।
मै रेल बेचूं, बैंक बेचूं और बेचूं हिंदुस्तान।
इस पर बोलनेवाला होता तू कौन इंसान।
तुम गरीब हो, मेरे बादशाह की खता तो नहीं,
दाने दाने को तरस रहे हो।
यह उसकी रजा तो नहीं।
वो थोथी मन की बात से,
सारे मुल्क का पेट भरता है।
तू मन लगा कर सुनता ही नहीं
ये उसकी खता तो नहीं।
वो दुनिया में अपनी डंका पिटवा रहे हैं।
तुम झूठ मुठ का भद पिटवा रहे हो।
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स्वरचित व मौलिक रचना:-
युवा कवि/ साहित्यकार
रविशंकर साह
सर्वोदय आवासीय विद्यालय
रिखिया रोड़, बलसारा बी0देवघर
झारखंड।
मोबाइल नम्बर- 7488742564