आदमी लाचार बा
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आदमी देखीं बड़ी लाचार बा।
हौसला राखल इहाँ दरकार बा।
बा खजाना माल दौलत झूठ सब,
प्रेम ही तऽ जिंदगी के सार बा।
देह बा माटी क पिजड़ा जान लीं,
जिंदगी प्रभु के दिहल उपहार बा।
रोज महँगाई बढ़ेला आजकल,
हाय कइसन देख लीं सरकार बा।
हो गइल वापस बनल कानून जब,
फिर न जाने कौन अबहिन रार बा।
सन्तोष कुमार विश्वकर्मा सूर्य