आदमी फिर इसे भी बिसर जाएगा…
दर्द सहकर भी’ जब ये निड़र जाएगा
आदमी फिर इसे भी बिसर जाएगा
फूल की राह कांटे रहें भी मगर
साथ हर पल यहां हम- सफ़र जाएगा
यह नया इश्क़ है करने’ दो मन का’ ही
कुछ दिनों बाद ये भी सुधर जाएगा
चोट देगी इसे इश्क़ की राह तब
चोट खाकर ये आशिक किधर जाएगा
गांव से दूर यहां मन भी’ लगता नहीं
माॅं थी’ कहती कमाने शहर जाएगा
लौट जाएं वहां हम भी यह सोच कर
माॅं के’ छूने से’ फिर ज़ख़्म भर जाएगा
बे- हुनर है जो भी इस जहां में ‘शिवा’
लौट के हर दफ़ा बे – ख़बर जाएगा
-©अभिषेक श्रीवास्तव “शिवा”
-अनूपपुर मध्यप्रदेश