आदमी की जिंदगी
17.9.23, रविवार
गीतिका छंदाधारित गीतिका ( मापनी युक्त मात्रिक,26 मात्राएं, मापनी – 2122 2122 2122 212) यति 14,12 पर या 12,14 पर
समांत – ई, पदांत – है आदमी की ज़िंदगी
#गीतिका #
अब सवालों से भरी है, आदमी की जिंदगी।
बस बवालों में फंसी है, आदमी की जिंदगी।।
है मशीनी दौर ऐसा,सांस की फुरसत नहीं,
नींद में भी चल रही है, आदमी की ज़िंदगी।
छल रहा है आदमी ही,आदमी को अब यहां,
बस छलावा ही बनी है, आदमी की जिंदगी।
हो गया है आदमी ,खुदगर्ज ऐसा दीखता,
स्वार्थपन से ही लदी है, आदमी की जिंदगी।
हो गया अंधा ये’ मानव, मोह में कुछ इस तरह,
खून में ही अब सनी है, आदमी की जिंदगी।
ढूंढना बस खामियां ही, आदमी का है चलन,
पर हकीकत फूल सी है, आदमी की जिंदगी।
सच सुनो तो बात अपनी कह रहा है अब अटल,
पुष्प बेला सी लगी है,आदमी की ज़िंदगी।
🙏अटल मुरादाबादी 🙏