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13 Feb 2021 · 1 min read

आदमी का आदमी होना बड़ा दुश्वार है

सत्य का पालन करना श्रेयकर है। घमंडी होना, गुस्सा करना, दूसरे को नीचा दिखाना , ईर्ष्या करना आदि को निंदनीय माना गया है। जबकि चापलूसी करना , आत्मप्रशंसा में मुग्ध रहना आदि को घृणित कहा जाता है। लेकिन जीवन में इन आदर्शों का पालन कितने लोग कर पाते हैं? कितने लोग ईमानदार, शांत, मृदुभाषी और विनम्र रह पाते हैं। कितने लोग इंसान रह पाते हैं? बड़ा मुश्किल होता है , आदमी का आदमी बने रहना।

रोज उठकर सबेरे पेट के जुगाड़ में,
क्या न क्या करता रहा है आदमी बाजार में।
सच का दमन पकड़ के घर से निकलता है जो,
झूठ की परिभाषाओं से गश खा जाता है वो।

औरों की बातें है झूठी औरों की बातों में खोट,
और मिलने पे सड़क पे छोड़े ना दस का भी नोट।
तो डोलते हुए जगत में डोलता इंसान है,
डिग रहा है आदमी कि डिग रहा ईमान हैं।

झूठ के बाज़ार में हैं खुद हीं ललचाए हुए,
रूह में चाहत बड़ी है आग लहकाए हुए।
तो तन बदन में आग लेके चल रहा है आदमी,
आरजू की ख़ाक में भी जल रहा है आदमी।

टूटती हैं हसरतें जब रुठतें जब ख्वाब हैं,
आदमी में कुछ बचा जो लुटती अज़ाब हैं।
इन दिक्कतों मुसीबतों में आदमी बन चाख हैं,
तिस पे ऐसी वैसी कैसी आदतें गुस्ताख़ है।

उलझनों में खुद उलझती ऐसी वैसी आदतें,
आदतों पे खुद हैं रोती कैसी कैसी आदतें।
जाने कैसी आदतों से अक्सर हीं लाचार है,
आदमी का आदमी होना बड़ा दुश्वार है।

अजय अमिताभ सुमन

Language: Hindi
2 Likes · 6 Comments · 247 Views
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