आदमी आदमी को खाये जा रहा है….
आदमी आदमी को खाये जा रहा है
जी हाँ सरकार!
यही आक्रोश दिल को दहलाये जा रहा है!
तुम तलवे तक चाट लेते हो
सत्ता में आने से पहले!
फिर तुम सबसे तलवे चटवा लेते
हो सूद सहित सत्ता में आने के बाद!
वादे करते हो लम्बे-चौड़े बहुत ही ज्यादा
यहाँ तक की तुम्हारे दिमाग से बाहर
होने लगता है तुम्हारा बनावटीपन
तब तुम दस हाथ का लम्बा-चौड़ा
घोषणापत्र छपवा देते हो!
तुम खुद झोपड़ी में रहकर
हमें महल दिलाने की बात करते हो!
फिर आज कैसी पसरी ये दशा है
किसान फाँसी पर झूल रहे हैं
तुम मखमली पलने पर….
क्या यही जनता की दुर्दशा है!
सरकारी चीजों की क्या पस्त दशा है
तुमने गिनवाये करोड़ों रुपये शिक्षा,स्वास्थ्य
तरह-तरह के लुटेरों के नाम किया!
सच तुम्हारी सरकारी चीजों में मैंने
लोगों को घुटते देखा है!
डॉक्टरों की अमीरी अदा है पैसा पकड़ाओ
तो दवा ही दवा है!
वरना हर कोने दगा ही दगा है!
कितना सुव्यवस्थित है शासन तुम्हारा
पता जब चलता है कि तुम आ रहे हो
किराये पर सब बिछी मखमली दरी
जगह-जगह है!
पूरा प्रांगण अमीरी का चोला पहन
लहलहाता है!
तुम्हें भी लगता हैं सब मजा ही मजा है!
रखते हो जैसे ही एक पैर तुम
अपनी सफारी में!
उखड़ी चुकी होती है कितनी मखमली दरी
दूसरा पैर अंदर रखते ही
पहुँच जाती हैं अपने मालिक के घर!
फिर मैदान सब सफा ही सफा है!
तुमने दिये जनता के लिए कुछ तोहफे
बेशक! पर उसकी बड़ी दुर्दशा है!
100नं डायल करो तो बिन गुलाबी
और हरी नोटों के कोई काम नहीं!
108 डायल करो तो बिन पैसे कोई बात नहीं
आदमी मर जाये तो बेहतर है
लेकिन पैसे बिना काम होगा नहीं!
जी हाँ सरकार!
यही तुम्हारी नीतियों की व्यथा है!
पहुँचें भूल से यदि कोई सरकारी अस्पताल
सोच लो पहले ही अब वह मर
चुका है!
बिना गुलाबी हरी गड्डी दिखाये ये
तुम्हारे चमचे सुनते नहीं
जी हाँ सरकार हर जगह यही लूट-पाट
की वजह है!
सरकारी नौकरी तो चाँद तोड़ने
के बराबर हुई क्योंकि वहाँ तुम्हारे
चमचे साक्षात्कार की लगाये अदा हैं!
जितनी ज्यादा हरी गुलाबी दे सकते हो उतनी ही
जल्दी नौकरी !चाहे तुम दसवीं में फेल क्यों न हो!
और नहीं है यदि तुम्हारे पास
ये गुलाबी हरी नोट तो तुम चाहे
चप्पल घिस के आये हो सरकारी चीजों
में कोई जगह नहीं है!
ये तुम्हारे चमचे साक्षात्कार में अयोग्य
साबित करते हैं !
जो खुद अयोग्य होकर आयोग में
आये हैं!
पर जाने कैसी ये तुम्हारी राजनीति की
अदा है!
बड़ी शर्म आती है जब सुनने में आता है
कि लाश को लेकर एक आदमी काँधे
पर गया है!
नहीं तुम्हारी कोई 108 और ना कोई 100
क्योंकि सब पैसे की तवायफें अदा हैं!
अगर मिल जाये गुलाबी हरी गड्डी
हर बाजार में नाचने को तैयार हैं ये!
तवायफें तो तब भी बेहतर हैं
वे नाचती हैं तो सिर्फ अपने कोठे पर
ये तो हर जगह तैयार है!
बस मिल जाये कुछ रंग-बिरंगी कागजों
का नशा!
कभी तो तुम पलने से उतर कर देखो
भुखमरी से लड़ती आम आदमी की दशा
तुम योग करवाते हो बड़े स्तर पर
एक दिन भोजन का भी प्रबन्ध करके देखो
जी हाँ सरकार!
पेट भरेगा नाम तुम्हारा होगा
यकीन न आये तो कभी तुम अपनी
ठाट-बाट से अलग होकर चुपचाप
घूम जाओ इन भिखमंगे-नंगों की
बस्ती में! तुम्हारे चमचों की असलियत
तुम्हारे सामने हर जगह होगी!
जी हाँ सरकार!
तुमसे हर पाँच साल बाद ऊबने की असल
यही वजह है!
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शालिनी साहू
ऊँचाहार, रायबरेली(उ0प्र0)