आदमियत
तू एक जरूरी काम कर,
आदमियत का तमगा-
अपने नाम कर।
बेतहाशा पैदा हो रहे इंसान,
जनसंख्या में हो रही वृद्धि।
होना भीड़ में खरा आदमी,
है बड़ी उपलब्धि।
तू बन कर दुखियों का मददगार,
इंसानियत का एहतराम कर। ,
यहाँ होते रहते हैं नाटक,
यह दुनियाँ है एक रंग मंच।
चलते रहते छल छंद यहाँ,
लोग रचते रहते हैं प्रपंच।
तू छोड़ कर दुनियाँ गीरी,
भलमनसाहत के काम कर।
बड़ा फिरकापरस्त है इंसान,
करता रहता नारी का अपमान।
कोई नहीं है यहाँ समादृत,
मेधा का नहीं होता सम्मान।
तू कर नारी की रक्षा,
मेधावी का सम्मान कर।
किसी को मिल गया खुला आसमां,
किसी को नहीं मिली ज़मीं।
कोई किलोल करता जलधारों में,
किसी को नहीं मिली ज़रूरत भर नमी।
तू कम कर अपनी ज़रूरतें,
वंचितों का इकराम कर।
जयन्ती प्रसाद शर्मा