आदत और फितरत
आदत है मेरी औरों के फितरत को भुला देना
किसी की खुशीयों में मुस्कुरा देना और गम में आंसू बहा देना
कुछ कहते है मेरी फितरत ही कुछ ऐसी है
क्या करे हम आदत से मजबूर है पर मतलबी फितरत से दूर है
हमारी जुबां ही कुछ ऐसी है अपने अपनों में भेद करती है
शायद इसलिए हम आदत और फितरत में भेद करते है
आदत अच्छी बुरी हो जाये पर फितरत शातिर ही कहलाता है
इंसा भी बड़ा अजीब है मनमाफिक जुबां से काम चलाता है
शायद इसलिए आसानी से फितरत और आदत को जुदा कर पाता है ।
सुविधा जैसी पाता है वैसे ही व्यवहार अपने काम लाता है
कभी फितरत से बुरा और आदत से भला बन जाता है
क्या कहे कैसे कहे सबको एक दिन एक में मिल जाना है
वैसे ही जैसे आदत और फितरत दिखता जुदा पर एक ही रह जाता है।
कोई कितना भी भेद कर पर दोनों आखिर एक ही कहलाता है
कभी आदत फितरत तो कभी आदत फितरत बन जाने के काम आता है।