आदतें
आदतें
झूठ की चादर जो मोटी ओढ़ ली,
शर्म की सर्दी भला फिर क्या करेगी।
जो जलाया घर का चूल्हा जलन से,
दया की दरिया भी उसका क्या करेगी।।
प्रेम का पाखंड कर जो उड़ रहा,
त्याग का तैय्यारा उसका क्या करेगा।
पाप की पतवार ले जो बैठा भोग नौका में,
जलजला आए तो उसका क्या करेगा।।
मद का प्याला हद से ज्यादा पी जो ली,
पीके अमृत अमर होकर क्या करेगा।
मौत को मंत्री जो अपना मान ले,
‘संजय’ अपनी मौत वह क्यूं कर मरेगा।।
जै हिंद