आत्म ज्ञान।
सबसे उत्तम है,ज्ञानो में आत्म ज्ञान।यह युग लाया है भोतिक वादी ज्ञान।।अपने अपने मन में, हैं सभी ज्ञान वान। कौन किसको मान रहा गुरु,यह अचरज जान।। लगा है दोहराने को भूतकाल का इतिहास।लख चौरासी जीव के , रहता आस-पास। भ्रमित होने के लिए, बना दिए की ज्ञान । इससे पूरी जिंदगी कर न सके पहचान।। भटकता फिरें प्रानी, लेकर गुरु की आस । न मिली मंजिल,न मिला आकाश।। कितने पंथ बनाये,कितने बने धरम। फिर भी मानव का ,मिट न सका भरम।।