आत्मा
जो आज गुज़रा तुम्हारे साथ,वो कल मेरे साथ गुजरा था!
जिसका साया ही फकत उम्र की दहलीज़ पर बिखरा था!!
उठते ही उसका साया,मैने अपने को कितना बूढा पाया था?
सोचता हू शायद यही जीवनचक्र है एक गया,एक आया था!!
जाने वाले की स्मृतियँ| शेष रह जाती है,आती और रुलाती है!
चंद दिनो मे इतिहास की मानिन्द, पृष्ठ पलटने पर सताती है!!
एलबम और दीवार पर टंगी तस्वीर,धूल पौछने पर बताती है!
मैने कर्तव्य पथ चुना था,तू भी उसी पर चल बाधा हटाती है!!
‘मै इक आत्मा हँ,शरीर और रुप परिवर्तन जिसकी नियति है!
जो शरीर मे रह सदकर्म करता है, बस उसकी ही सदगति है!!
वरना चौरासी लाख योनियो के संक्रमण मे पैदा और मरता है!
इसलिए सनातन संस्कृति विधान से ही यह जीवन चलता है!!
सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट कवि पत्रकार सिकंदरा आगरा -282007 मोबाइल 9412443093