आत्मा
✍️ आत्मा ✍️
हूं मन्नत में मांगी, है रहना अकेला
जरा देख लूं मोह – सागर का मेला
आडंबर का लगता वहां पर झमेला
जरा देख लूं………………………
लेकर विदा चलके आई यहां पर
कर्म क्षेत्र के गीत गाई यहां पर।
यहां अन्य मेरी सहेली सगी जो
अलग रूप अपना दिखाई यहां पर।।
पावन ते पतित मैं यहां हो चली हूं
अब मैं कहूं कैसे कितनी भली हूं।
माया – पट ने मुझे ऐसे छीना
हुई मैं हुआ ज्यों ये तरु फलहीना।।
कभी मैं तलासी कि मिलते जो ज्ञानी
बनूं ज्ञान लेकर के खुद स्वाभिमानी।
ज्ञानी मिला तो मिला खुद गरज का
हुई ज्ञात बारे में कलि की कहानी।।
यहां मेल होता नहीं है किसी से
नहीं कोई नाता न रिश्ते किसी से।
संपत्ति – लालच ने घेरा सभी को
बनते किसी से बिगड़ते किसी से।।
अमरता का वर पाई वो आत्मा हूं
कभी जो न मिटती मैं वो आत्मा हूं।
कैसे दिखाऊंगी वर से ये चेहरा
अधम जिस्म में वो पुनीत आत्मा हूं।।
✍️ कवि ✍️
राधेश्याम “रागी” जी
कुशीनगर उत्तर प्रदेश से
मो0 : 9450984941