*आत्म विश्वास की ज्योति*
असुविधा के दुविधा को तप की सुविधा बना लो
कंदन करुण आंसुओं को यज्ञ की समिधा बना लो
हार ना विराम हो खुद को तुम पहचान लो
विश्वास के धरातल सतह पर, अंत: शक्ति को जान लो
लड़ खड़ा कर ना गिरो बस राह को पहचान लो
मंजिले कुछ दूर हैं मन से न हार मान लो
भूत को त्याग कर वर्तमान को स्वीकार कर
सुसुप्तता से उठ खड़े हो भविष्य हेतु प्रहार कर
गति प्रवाह धार में स्थिर खड़ा होना नहीं
जीवन के संग्राम में तुम कभी रोना नहीं
विश्वास की यह डोर का त्याग तुम करना नहीं
अनीति के राह पर तुम कभी चलना नहीं
इंजी. नवनीत पाण्डेय सेवटा (चंकी)