*आत्मा का स्वभाव भक्ति है : कुरुक्षेत्र इस्कॉन के अध्यक्ष साक्षी गोपाल दास जी महाराज का प्रवचन*
आत्मा का स्वभाव भक्ति है : कुरुक्षेत्र इस्कॉन के अध्यक्ष साक्षी गोपाल दास जी महाराज का प्रवचन
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यह भक्ति के रस में डूबी हुई एक शाम थी। इस्कॉन का अर्थ ही भक्ति है । जब साक्षी गोपाल दास जी महाराज के श्री मुख से गीता का महोत्सव आरंभ हुआ तो समूचा वातावरण भक्ति के रस में डूब गया । 25 मई 2022 बुधवार रामपुर वासियों के लिए प्रेम-रस की वर्षा का एक अनुपम दिवस सिद्ध हुआ । साक्षी गोपाल दास जी महाराज के मुखारविंद से मानो भक्ति की रस-धारा ही बह रही हो । एक-एक शब्द भक्ति भाव से श्री कृष्ण को समर्पित होता चला गया और आपकी यह मधुर वाणी हृदयों में बस गई कि आत्मा का स्वभाव भक्ति ही है ।
आपने बताया कि भगवान को प्राप्त करने का एकमात्र साधन भक्ति है । न तप से, न दान से और न ही ज्ञान से भगवान मिलते हैं । जब तक हृदय में भक्ति का उदय नहीं होता ,भगवान को पाना असंभव है। अनेक कथाओं के माध्यम से आपने श्रोताओं को यह समझाने का प्रयास किया कि भक्ति बाजार से खरीद कर लाई जाने वाली कोई वस्तु नहीं है । इसे तो निरंतर साधना से ही प्राप्त किया जा सकता है और यह साधना केवल भक्तों के बीच में रहने से ही प्राप्त होती है । भगवान की भक्ति करनी है तो भक्त-समाज के बीच रहो । भगवान मिल जाएंगे ।
हरि नाम सुमर सुख पाए:- यह कहते हुए आपने श्रोताओं से पूछा कि किस-किस को भगवान की भक्ति चाहिए ?
जब सब ने हाथ ऊंचे उठा दिए तब मुस्कुराते हुए प्रवचन-कर्ता ने कहा कि यह तो रटी-रटाई भाषा है । वास्तव में आपके हृदय की पुकार भक्ति नहीं है । संसार के सुख भोग हैं। मैं जहाँ-जहाँ जाता हूँ ,जिस-जिस के घर गया ,सब ने आज तक किसी न किसी भौतिक वस्तु की ही कामना मुझसे की है। किसी को घर चाहिए ,किसी को संतान चाहिए ,किसी को कुछ अन्य उपलब्धि चाहिए । लेकिन एक के भी अंतर्मन की पुकार भक्ति नहीं है । आपने कहा :-
संतन के संग लाग रे ,तेरी अच्छी बनेगी
तदुपरांत भक्ति भाव से आपने समस्त श्रोताओं के साथ मिलकर हरि-नाम का संकीर्तन किया । आपने कहा :-
गोविंद हरे ,गोपाल हरे
भज ले प्रभु दीनदयाल हरे
जय राम हरे ,जय राम हरे
भक्ति के विषय में केवल आपके विचार ही दृढ़ नहीं हैं ,भक्ति के संबंध में आपके भजन भी श्रोताओं को झंकृत कर देते हैं । ऐसा ही एक भजन आपने गाया :-
राधे तेरे चरणों की यदि धूल जो मिल जाए
सच कहती हूँ मेरी तकदीर बदल जाए
सुनते हैं तेरी रहमत दिन रात बरसती है
एक बूँद जो मिल जाए तो मन की कली खिल जाए
गीत में अद्भुत आकर्षण था और श्रोता अभी उसकी रस-सरिता में गोते लगा ही रहे थे कि सहसा एक और भक्ति गीत आपके श्री मुख से ऐसा प्रवाहित हुआ , मानो सागर ही उमड़ आया । आपके गीत के बोल हैं :-
यह तो प्रेम की बात है ऊधौ
बंदगी तेरे बस की नहीं है
यहाँ सर दे के होते हैं सौदे
आशिकी इतनी सस्ती नहीं है
बात में बड़ा वजन है और गीत में सार भी। उद्धव ब्रह्म-ज्ञान देने के लिए गोपियों के पास आए थे ,लेकिन उल्टे गोपियों ने उद्धव को प्रेम का पाठ पढ़ा कर वापस भेज दिया था । यही भाव भजन में अभिव्यक्त हो रहा था। बीच-बीच में पुनः भगवान के मधुर नाम का कीर्तन साक्षी गोपाल दास जी महाराज के द्वारा किया जाता रहा तथा तालियाँ बजाते हुए उपस्थित श्रोतागण हरि नाम संकीर्तन में स्वयं को सम्मिलित करते चले गए :-
सीताराम सीताराम
राजाराम राजाराम
जय हनुमान जय हनुमान
हरि बोल हरि बोल
यह ऐसे हरि नाम संकीर्तन के कुछ अंश हैं जिनसे पता चलता है कि आपके संकीर्तन में कृष्ण के अतिरिक्त अन्य देवी-देवताओं का आदर पूर्वक संकीर्तन होता है । आपके संकीर्तन के भावों के बोल थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद इस प्रकार रहे :-
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
एक भजन की पंक्ति आपके द्वारा इस प्रकार प्रस्तुत की गई :-
राधे राधे जपो चले आएँगे बिहारी
एक अन्य भावपूर्ण भजन इस प्रकार रहा:-
काम करते रहो ,नाम जपते रहो
नाम-धन का खजाना बढ़ाते चलो
एक बहुत ही मार्मिक भजन जो आपने सुनाया वह इस प्रकार रहा :-
लूट लो जिसका जी चाहे मैं शोर मचाऊँ गली-गली
कृष्ण-नाम के हीरे मोती मैं बिखराऊँ गली-गली
एक अन्य भजन के कुछ बोल इस प्रकार थे:-
दौलत के दीवानों सुन लो एक दिन ऐसा आएगा
धन-दौलत और माल-खजाना यहीं धरा रह जाएगा
साक्षी गोपाल दास जी महाराज ने उपस्थित श्रोताओं को बताया कि मैं तो रिमाइंडर करने अर्थात आपको बार-बार पुनः सचेत करने के लिए आता हूँ कि यह शरीर प्रभु-नाम के संकीर्तन के लिए ही आपको मिला है। इसका जितना उपयोग भक्ति को प्रगाढ़ बनाने के लिए कर लो, अच्छा रहेगा । भक्ति भाव यद्यपि हर मनुष्य के हृदय में निवास करता है लेकिन वह माया से ढका रहता है और जब तक उस माया के मोह से व्यक्ति को मुक्ति नहीं मिल जाती, तब तक भक्ति का उदय नहीं हो पाता । गीता के ग्यारहवें अध्याय के 53 वें और 54 वें श्लोकों को उद्धृत करते हुए आपने भक्ति को ईश्वर प्राप्ति का एकमात्र माध्यम बताया। आप का प्रवचन माधुर्य-रस से भरा था। भजनों में मौलिकता थी । उर्दू के शब्दों का प्रयोग विषय-वस्तु के प्रस्तुतीकरण तथा लयात्मकता की दृष्टि से चार चाँद लगा रहे थे। कार्यक्रम के अंत में फूलों की होली हुई। महाराज श्री ने टोकरी में रखे हुए फूल वर्षा कर वातावरण को सुगंध से भर दिया । फूलों में सज रहे हैं श्री वृंदावन बिहारी:- भजन का अंत में गायन भक्ति की रसमयता को बढ़ाने की दृष्टि से अभूतपूर्व प्रभावी सिद्ध हुआ । आपके साथ संगीत-मंडली मंच पर विराजमान थी तथा संगीत की स्वर-लहरी प्रवचन के सौंदर्य को द्विगुणित कर रही थी । समापन पर महाराज श्री के साथ-साथ पंडाल में उपस्थित समस्त समुदाय दोनों हाथ उठाकर नृत्य की मुद्रा में खो गया । थिरकते हुए कदमों के साथ हिलोरें मारता हुआ यह एक अविस्मरणीय दृश्य था।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451