आत्महत्या
सोचती हूँ, क्या वाकई आत्महत्या नाम की
कोई चीज होती भी है? या नहीं ?
क्योंकि अक्सर देखा है मैंने
हर आत्महत्या के पीछे एक कारण और
उस कारण के पीछे कोई व्यक्ति ।
चाहे बोर्ड में अच्छे नंबर लाना हो या
उतरना हो खरा किसी अपने की उम्मीदों पर,
किसी अपने ने दिल तोड़ा हो या
किसी ने कर दी हो जिदंगी को
मौत से भी बदतर,
कोई-न-कोई कारण तो होता है
की गई हर आत्महत्या के पीछे
और इन कारणों के केन्द्र में होता है
कोई व्यक्ति , कोई समाज या कोई संस्था ।
अगर होती कोई व्यवस्था पढ़ने की
किसी के अंतर्मन को ,
यकीन मानिए कानून की बही में दर्ज हत्यारों से
कहीं ज्यादा हत्यारे दर्ज मिलते
इन आत्महत्या करने वालों के अंतर्मन की बही पर ।