आत्महत्या: ताकत या कमजोरी
दुनिया की इस महफ़िल में आसान नहीं होता हंसकर जीना,
कई बार खुद को तोड़कर अपनों को जोड़ना पड़ता है,
दिल को छू लेने वाले किरदार जो निभाते हैं इस दुनिया में,
अक्सर वही किरदार हमारे दिल और अस्तित्व से दूर होता है,
लेता है जो अपनी जान अपने ही हाथों से यहां पर,
कमजोर समझती दुनिया जिसे असल में ताकतवर बहुत होता है,
लड़ जाता हैं जो दुनिया भर के तूफ़ानों से डटकर यहां,
अक्सर वही अपने अंदर छिपे तूफ़ानों को संभाल नहीं पाता है,
लोग कहते हैं उसमे जिगर नहीं जिन्दगी की राहों पर चलने का,
पर वो क्या जाने किन कांटो भरे सफर से वो गुजरता है,
लोगों की नजर में सिर्फ एक नाम भर होता है अस्तित्व हमारा,
पर किसी के लिए यह नाम दुनिया को जानने का जरिया बन जाता हैं,
लड़ता है जब वो अपनी जिंदगी के उन मुश्किल दौरों से,
तब उसके दिल में समाज क्या कहेगा बस यही ख्याल आता है,
तकलीफ न हो किसी अपने को हमारी वजह से इस जहां में,
इसलिए कई बार अपमान का जहर वो खुद पी लिया करता है,
मन नहीं भरता फिर समाज का तो उसे ताने दे देकर मारने की कोशिश कई करता है,
लोग कहते इसे आत्महत्या भले पर यह समाज की सोच से किया गया कत्ल होता है,
करते जब तहकीकात इसकी तो मुख्यत तनाव का मुद्दा उठता है,
पर जान कर भी अनजान बनता यह जहां,
कि इसके हर तनाव का कारण यह समाज ही होता है,
गुनाह होता कानून की नजर में खुद की जान लेना,
क्यूंकि अपनी ही जान पर हक हमारा नहीं पहले हमारे देश का होता है।