आत्महत्या क्यों ?
क्यों आँखों से पानी छलका
क्यों मन आज हो रहा उदास
इतनी ऊँचाई को छूकर भी इंसान
क्यों तन्हा महसूस कर रहा है आज।
दिल का एक कोना चाहे
अपने दर्द का करना बयान
और दिल का एक कोना बोले
खामोश रह तु इंसान।
इस कशमकश में क्यों जी रहा है
आज हर एक इंसान
यह कैसा व्यथा समया है मन में
यह कैसी कसक दिल में छाया है
अपने मन का दर्द बताने में
क्यों इंसान इतना सकुचाया है।
क्यों इंसान आज अपने मन का दर्द
अपनों से नही बाँट पा रहा है
क्यों अपनों के बीच में रहकर भी
वह अकेला महसूस कर रहा है ।
यह समय का है कैसा परिवर्तन
जहाँ अपनों के मन की व्यथा
अपने भी नहीं समझ पा रहा है
चंद समय पहले तक हँसते-बोलते इंसान
क्यों चंद समय बाद आत्महत्या
करते हुए नजर आ रहा है।
क्यों अस्पताल आजकल
डिप्रेशन के मरीज से भरा पड़ा है
इंसान को निंद क्यों नही आ रहा है
सपनों के पीछे भागते भागते
वह क्यों अपने को मिटा रहा है।
आज इंसान तन से कई गुना ज्यादा
क्यों मन को भारी कर लिया है
क्यों सब कुछ होते हुए भी
सकुन से नही जी पा रहा है
क्यो आत्महत्या ही एकमात्र
उसे हल नजर आ रहा है।
किसी अपनों को भी वह अपने
दिल का हाल क्यों नही बता पा रहा है
ऐसी कौन सी कसक है दिल में
जो वह अपनों के सामने
रो नही पा रहा है।
क्यों वह के भीड़ में भी वह
खुद को अकेला देख रहा है
क्यों वह घुट घुट कर अपने में ही
तील तील कर मरते जा रहा है।
क्या जरूरत आ पड़ी है ऐसी
वह दिखावटी हँसी के पीछे
अपना दर्द छुपा रहा है
क्यों अपनों से भी वह अपनी
मन असलियत नही दिखा पा रहा है।
क्यों आज वह अपने दिल पर
इतना बोझ लिए खड़ा है
क्यों नही खुलकर हँस पा रहा है
क्यों नही खुलकर बोल पा रहा है
क्यों नही खुलकर जी पा रहा है।
क्यों वह डिप्रेशन का आज
शिकार होते जा रहा है
क्यों जीवन को खत्म करने को ही
वह बेहतर हल मान रहा है।
क्यों नही समझ रहा है की
यह जीवन ईश्वर ने जीने के लिए दिया है।
उसको भरपूर जिया जाए
सुख-दुःख, खुशी-दर्द जीवन का पहलू है
उसे अपनों के साथ बाँट कर
खुशी खुशी जिया जाए।
न की जीवन के थपेंड़ो से हारकर
आत्महत्या किया जाए।
~अनामिका