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12 Sep 2023 · 1 min read

आत्महत्या कर के भी, मैं जिंदा हूं,

आत्महत्या कर के भी, मैं जिंदा हूं,
और इसी बात पर मैं शर्मिन्दा हूं।
हर बार पंख काट कर खुद ही अपना,
कहती हूं, मैं एक आज़ाद परिंदा हूं।
पतवार हूं आज कई किश्तियों का
किनारे लगाने वाला कारिंदा हूं।
हस्ती मेरी जो काम आए किसी की,
और किसी ज़ुबां पर मैं निन्दा हूं।
एहसास यही कराते हैं जिंदा रहने का,
वर्ना काये के पिंजरे में कैद एक मुर्दा हूं।

3 Likes · 7 Comments · 570 Views

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