आत्मशक्ति
मनुष्य शरीर अपार
शारीरिक मानसिक,
शक्तियों का भंडार।
अधिकांश न कर पाते उपयोग
करते तो आधा अधूरा,
जीते जीवन हीन भावना से ग्रस्त
सुप्त शक्तियों से तंग,
शरीर शक्ति से होती
आत्मा प्रकाशित,
सक्रिय सकारात्मक
सृजनात्मकता संग।
अपने ही हाथों
बने रहना दीन-हीन
है सबसे बडा पाप,
सार्थक प्रयास बनाते
कठिन आसान।
स्वयं के प्रयास बनाते
आत्मनिर्भर बलवान।
सकारात्मक विचार
जब क्रियात्मक हो जाते,
सम्भावित शक्तियां होती जीवंत
होती अनंत शक्तियों की अनुभूति,
और इनका न होता अंत।
स्वरचित
मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
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