आत्मशक्ति
एकाग्रता है एकता,
क्यों तू नहीं देखता।
अंगार तू दहकता,
मुश्किलों में क्यों बहकता ।
तू आत्मशक्ति जगा ले तो ,
परमात्मा को भी पाले ।
अब प्रण की है देरी ,
बज चुकी है रणभेरी ।
सफलता के तू वास्ते ,
निकाल हजारों रास्ते ।
सफलता खड़ी हजार तेरी ,
सिर्फ कदम बढ़ाने की है देरी ।
माना कि मुश्किलें हैं अनेक,
तू स्वयं को एक बार तो देख ।
विलक्षण तेरी आत्म शक्ति ,
हिला के रख दे जो सारी सृष्टि ।
अपनी शक्ति को पहचान ले ,
सूर्य को तू मुट्ठी में कर सकता है जान ले।