आत्मविश्वास’ (मेरेअंदर का आकाश)
मेरे अंदर मेरा अपना निजी आकाश है.
वो बहुत विशाल,वृहद,
अनंत और विराट है .
मेरी अपनी आकाश गंगा में चमकते हैंं
अनगिनत सितारे, सोच के सितारे
चाहत के नक्षत्र खुशियो के नज़ारे .
बाहरी दखलअंदाज़ों से अछूता
मेरा आकाश .
यहाँ बिखरे हैं रोशनी के फव्वारे.
दुःख, दर्द ,हताशा का.
नहीं यहाँ कोई ,नामों निशाँ .
यहाँ सितारे टूटते नहीं .
हिम्मत और उम्मीद को
नये आयाम देते हैं .
आये दिन ये मुझे
मेरे होने का पयाम देते हैं .
यहीं से आस निकलती है
आगे बढ़ने की .
बाहरी दुनिया में फैले
व्यभिचार से लड़ने की .
जब भी कोई ज़हरीला नाग
मुझे डसने को फन उठाता है .
उसे कुचलने का साहस
इसी अमृत कलश सेआता हैै .
मेरा अपना आकाश मुझे बहुत सुहाता है .
मेरा सप्तरिशि मुझसे अक्सर बतियाता है .
वो मुझे अटल ,अडिग रह
अनन्त तक पहुँचने के गुर बताता है .
मेरा ध्रुव मुझे इस
दुनियावी तपते रेगिस्तान से
अछूते निकलने की राह दिखाता है .
मेरा निजी आकाश ही
मेरे त्रास का त्राता है .
मेरे अपने अंदर वाले आकाश का
अपना अलग ही ठाठ है .
मेरा अंदर वाला आकाश,,
मेरा ‘आत्म विश्वास’,
बाहर वाले ब्रह्मांड से भी,
वृहद,विशाल,अनंत और विराट है .
अनंत और विराट है।
अपर्णा थपलियाल”रानू”