आत्मवंचना
ये क्या दिन देखने को मिल रहे हैं ?
हम अपने आप को बातों के छद्म से छल रहे हैं ,
कभी झूठे वादों के , कभी भविष्य के सपनों के ,
कभी प्रस्तुत प्रलोभन के ,कभी कल्पित अपनों के ,
कभी यथार्थ को नकारते प्रतिपादित कुतर्क से ,
कभी गूढ़ मंतव्य निर्मित काल्पनिक परिदृश्य से ,
कभी समूह मानसिकता प्रभावित चिंतन से ,
कभी आत्मवंचना करते अर्जित संज्ञान से ,
अच्छे दिन की प्रतीक्षा में हम किस दिशा में
जा रहे हैं ?
आत्मचिंतनविहीन किस माया- चक्र में
फंस रहे है ?