आत्मबोध
हम पर प्रहार करने वालो
अब दाँव नहीं चलने वाला
रख दिया पाँव जो मग में अब
वह पाँव नहीं हिलने वाला
जिनको खुद का ही बोध नहीं
सिखलाते हमको आत्मबोध
जो घाव दिया तुमने अब तक
वह घाव नहीं भरने वाला
क्या है भारत क्या है संस्कृति
यह हमें सिखाओ मत अब तुम
अपनी संस्कृति से ओतप्रोत
मैं घूम रहा बन मतवाला || –
— अशोक मिश्र