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6 Jun 2024 · 4 min read

आत्मबल

आत्मबल

विभीषण को लंका का राजपाठ सँभाले दो दिन हो गए थे , और वह लंका के बहुत से मानचित्र लेकर समुद्र के इस पार , राम, सीता, लक्ष्मण से मिलने आए थे । राम , रावण की समृद्धि, तकनीकी प्रगति, विज्ञान, मनोरंजन के साधन, विचार आदि को समझना चाहते थे ।विभीषण उन्हें एक के बाद एक मानचित्र समझाते चले जा रहे थे ।

“ यह देखिये , यहाँ पूरी शोध की सुविधाएँ हैं, यहाँ दूर तक मनोरंजन ग्रह है , यहाँ विभिन्न विचारों को पोषित करने वाले गुरूकुल है | “

सूचनाएँ विस्तृत थी, और प्रभावी थी । राम, सीता और लक्ष्मण इस नए ज्ञान से अभिभूत थे। विभीषण के जाने के बाद, लक्ष्मण ने अपने विचारों से उभरते हुए कहा,

“ भईया, मुझे आश्चर्य है कि इतने शक्तिशाली साम्राज्य को हमने निर्धन , अशिक्षित, वानर सेना की सहायता से पराजित कैसे कर दिया?
यदि विभीषण ने हमें लंका के भेद बता भी दिये थे , तो भी , इतने शक्तिशाली राज्य को जीतने के लिए, मात्र यह कारण तो पर्याप्त नहीं हो सकता ।”

“ मैं भी यही सोच रहा हूँ , “ राम ने कहा, “ उनके पास तो वायुयान थे और हमारे पास रथ भी नहीं थे , वे नित नए हथियार बना रहे थे, और हमारे पास वहीं प्राचीन हथियार थे , उनके पास प्रशिक्षित सेना थी , हमारे पास इतने कम समय में खड़ी की गई एक टुकड़ी थी , वे अपनी भूमि पर थे , हम घर से दूर थे। यहाँ तो कुछ भी समान नहीं था । “

दोनों भाई कुछ पल अपने विचारों में खोये चहल कदमी करते रहे , फिर राम ने अपने विचारों में खोई , चुपचाप बैठी सीता से कहा, “ तुम क्या कहती हो जानकी , तुमने रावण को निकट से देखा है, भले ही वह स्थिति दुखद थी, परन्तु आत्मरक्षा के लिए तुम्हें उसका अध्ययन भी करना पड़ा होगा । फिर कुछ पल रूक कर कहा, “ तुम्हें वह किस तरह का व्यक्ति प्रतीत हुआ ?”

सीता की आँखों में उसकी स्मृति मात्र से रोष उभर आया, “ फिर उन्होंने स्वयं को सँभालते हुए कुछ सोचते हुए कहा , “ उसका अभिमान एक दिखावा था , वह भीतर से खोखला हो चुका था , मैं उसकी बंदिनी थी , परन्तु, जब भी वह मेरे समक्ष आता , भयभीत लगता ।”

अनेक पल बीत गए, राम, लक्ष्मण दम साधे सीता के फिर से अपने विचारों से उभरने की प्रतीक्षा करते रहे , सीता ने खड़े होते हुए कहा , “ मैं सोचती हूँ , आरम्भ में एक प्रतिभाशाली राजा अपनी प्रजा को एक स्वप्न देता है, उनके आत्मबल को जगाता है, प्रजा उसे पा आशाओं से भर गतिमान हो उठती है । राजा और प्रजा मिलकर स्वप्न को आकार दे डालते हैं , और यहाँ से जन्म होता है एक अभिमान का, दूसरों पर अपना प्रभुत्व बनाने की कामना का, यह अंकुर तेज़ी से एक वृक्ष बन जाता है, राजा और उसके कुछ विशेष सहयोगियों का अहम आकाश छूने लगता है, अब वह हर स्थिति में अपना अभिमान बनाए रखना चाहते हैं, और यह अभिमान उन्हें भीतर से खोखला करता चला जाता है, प्रजा अशांत हो उठती है , सामान्य जन में मतभेद बढ़ने लगते हैं , कहीं न कहीं बहुत से प्रजा जन दूसरों पर बढ़ते अत्याचारों के लिए स्वयं को दोषी समझ रहे होते है, जन सामान्य का अपराध बोध बढ़ने लगता है ,इसलिए उनकी सेना उस सेना के समक्ष क्षीण हो जाती है , जो अपने जीवन मूल्यों के लिए लड़ रही होती है । “

राम मुस्करा दिये, “ सुनने में यह व्याख्या कितनी सरल लगती है, परन्तु यह भी तो सत्य है कि जीवन के सभी महान सत्य सरल हैं ।”

“ मैं यह नहीं कह रही कि यह पूर्ण व्याख्या है, परन्तु जब जब रावण मेरे समक्ष आया , मैंने अनुभव किया , वह जानता था वह ग़लत है, यदि उसमें अभिमान न होता तो अपनी त्रुटि को मान अपने जीवन को नए अर्थ दे सकता था , परन्तु अभिमान ने उसे वैसा करने नहीं दिया, अपितु उसने अपना सारा ज्ञान, समस्त संपन्नता उस अभिमान को पोषित करने में लगा दी, जिससे उसका चिंतन अस्पष्ट होता गया, और वह ग़लत नीतियाँ बनाता चला गया ।”

राम ने सीता को गहरी दृष्टि से देखते हुए कहा, “ मुझे गर्व है, ऐसी विकट स्थिति में भी तुम्हारा आत्मबल बना रहा। “

“ जब राम मेरे पति हैं तो यह कैसे हो सकता था कि मेरा आत्मबल क्षीण हो जाता ।”

राम ने देखा , लक्ष्मण की आँखें नम हो आई हैं ।

“ इन्हें बह जाने दो लक्ष्मण, तुम्हारे आँसू वह कहना चाहते हैं जो भाषा कहने में असमर्थ है। “

लक्ष्मण भावावेग में बाहर चले गए, तो राम ने कहा , “ सदा से मुट्ठी भर शक्तिशाली राजाओं ने पृथ्वी पर जन साधारण के जीवन को लाचार बनाया है, निर्धन राम और लक्ष्मण यदि अशिक्षित वानरसेना के साथ शक्तिशाली रावण को पराजित कर सकते हैं तो , बेबस जनसमूह भी अपने अधिकारों के लिए उठ खड़ा हो सकता है ।”

लक्ष्मण लौट आए थे , द्वारा से ही उन्होंने मुस्करा कर कहा , “ हम अयोध्या लौट कर समस्त जनसमूह को यही स्वप्न देंगे । जन समूह का आत्मबल ही हमारी सच्ची प्रगति होगी ।”

राम और सीता संतोष से मुस्करा दिये । तीनों शांत थे , परन्तु उनकी धड़कने जानती थी उनका स्वप्न एक ही है ।

——शशि महाजन

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