Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
18 Feb 2020 · 3 min read

आत्मज्ञान

झबरी बिल्ली कई दिनों से चूहे खा-खाकर उकता गई थी। रोज़ वही मांस, वही स्वाद। लानत है ऐसी ज़िंदगी पर। आज कुछ नया होना चाहिए। तभी उसके क़रीब से एक चूहा तेज़ी से भागते हुए निकला, झबरी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। चूहा झबरी के इस बदले व्यवहार पर हैरान था।

ख़ैर, झबरी वहाँ से किसी नए शिकार की तलाश में चल पड़ी। कुछ दूर चलने पर उसे सुस्त क़दम से चलता हुआ एक ऊँट दिखाई दिया। काश! ये विशालकाय जीव कहीं मरा हुआ मिल जाए तो, छह महीने तक मुझे शिकार ढूढ़ने की ज़रूरत न पड़े। इसका गोश्त कभी खाया नहीं! निःसंदेह बड़ा स्वादिष्ट होता होगा। वह ऐसा सोच रही थी, तभी सामने एक काला कुत्ता उसकी तरफ़ लपका। अब झबरी की जान पे बन आयी। कहाँ वह ऊँट का गोश्त खाने का सोच रही थी और कहाँ ये आफ़त आ टपकी! ‘भाग झबरी नहीं तो तेरी मौत आज तय है!’ ऐसा विचारकर झबरी आनन-फानन में भागी और क़िस्मत से नज़दीक आम का एक बड़ा वृक्ष था। जिस पर चढ़ने में किसी तरह झबरी ने सफलता पाई, और उसकी जान में जान आई। अब कुत्ता वृक्ष के नीचे से खड़ा-खड़ा भौंकने लगा। पेड़ पर एक कबूतर जोड़ा बैठा था। जो झबरी को पेड़ पर चढ़ता देख, उड़ गया था। झबरी ने सोचा, “काश! वो कबूतर का जोड़ा, आज उसका भोजन बन जाता तो कितना लज़ीज़ भोजन होता। एक लम्बा अरसा गुज़र गया, कबूतर का मीट खाये। जब कुत्ता भौंक-भौंककर थक गया तो वह अपने रास्ते चल दिया, किसी नए शिकार की तरफ़। जब झबरी को यक़ीन हो गया की कुत्ता अब नहीं लौटेगा, तो झबरी नीचे उतर आई।

शहर में कोई और कुत्ता न मिल जाये, इसलिए अब झबरी जंगल की तरफ़ चल पड़ी। काफ़ी भटकने के बाद, उसे सामने एक खरगोश फुदकता हुआ दिखाई दिया। झबरी की जिव्हा पर लार टपकने लगी। जीवन भर उसने खरगोश का गोश्त नहीं खाया था। अतः उसे पाने के लिए वह लालायित हो उठी, मगर सुबह से लगातार पूरा दिन दौड़-धूप करते-करते उसकी काफ़ी ऊर्जा ख़र्च हो चुकी थी। जब तक वह खरगोश के पास पहुंची, वह लम्बी छलांगे मारता हुआ, उससे दूर निकल चुका था और घनी झाड़ियों के बीच कहीं विलुप्त हो गया था। झबरी अब झाड़ियों के इर्द-गिर्द किसी अन्य शिकार को ढूंढने लगी कि उसके सामने किंग कोबरा साँप फन उठाये खड़ा हो गया। झबरी के प्राण पुनः हलक में आ गए। अतः झबरी के हृदय में अब भय का संचार हुआ और दुम दबाकर उसने जंगल से निकलने में ही अपनी भलाई समझी।

शाम को अपने निवास स्थान पर वापिस पहुँचते-पहुँचते झबरी काफ़ी थक चुकी थी और उसे जोरों की भूख भी लग आई थी। वापिस आई थकी-हारी झबरी को देखकर चूहे ने सोचा, अब झबरी संत हो गई है, शिकार नहीं कर रही है। चूहे ने एक बार फिर झबरी के सामने से निकलने की ठानी। जैसे ही चूहा उसके क़रीब पहुंचा, उसने चूहे को पकड़ लिया और चूहे को खाकर अपनी भूख शान्त करने लगी। आज उसे चूहे का गोश्त ही बेहद स्वादिष्ट लग रहा था। अतः झबरी अब समझ गई थी कि ख़याली पुलाव पकाने और व्यर्थ इधर-उधर भटकने से कोई लाभ नहीं है। भोजन करते-करते उसे आत्मज्ञान प्राप्त हुआ, “जो उपलब्ध है… वही पर्याप्त है।”

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 365 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
View all
You may also like:
“जब से विराजे श्रीराम,
“जब से विराजे श्रीराम,
Dr. Vaishali Verma
सन् 19, 20, 21
सन् 19, 20, 21
Sandeep Pande
.......... मैं चुप हूं......
.......... मैं चुप हूं......
Naushaba Suriya
@ खोज @
@ खोज @
Prashant Tiwari
मुकेश का दीवाने
मुकेश का दीवाने
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
दोस्ती देने लगे जब भी फ़रेब..
दोस्ती देने लगे जब भी फ़रेब..
अश्क चिरैयाकोटी
■ एक महीन सच्चाई।।
■ एक महीन सच्चाई।।
*Author प्रणय प्रभात*
अब गांव के घर भी बदल रहे है
अब गांव के घर भी बदल रहे है
पूर्वार्थ
श्रीराम किसको चाहिए..?
श्रीराम किसको चाहिए..?
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
धरती का बेटा
धरती का बेटा
Prakash Chandra
जगमगाती चाँदनी है इस शहर में
जगमगाती चाँदनी है इस शहर में
Dr Archana Gupta
"एक कदम"
Dr. Kishan tandon kranti
* श्री ज्ञानदायिनी स्तुति *
* श्री ज्ञानदायिनी स्तुति *
लक्ष्मण 'बिजनौरी'
दोहा
दोहा
प्रीतम श्रावस्तवी
क्या खोया क्या पाया
क्या खोया क्या पाया
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
कोशिश है खुद से बेहतर बनने की
कोशिश है खुद से बेहतर बनने की
Ansh Srivastava
इस दरिया के पानी में जब मिला,
इस दरिया के पानी में जब मिला,
Sahil Ahmad
दोहा- सरस्वती
दोहा- सरस्वती
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
द्रौपदी
द्रौपदी
SHAILESH MOHAN
काला न्याय
काला न्याय
Anil chobisa
ऊँचाई .....
ऊँचाई .....
sushil sarna
खामोशी ही काफी है गम छुपाने के लिए,
खामोशी ही काफी है गम छुपाने के लिए,
Er. Sanjay Shrivastava
कभी-कभी एक छोटी कोशिश भी
कभी-कभी एक छोटी कोशिश भी
Anil Mishra Prahari
कड़वी  बोली बोल के
कड़वी बोली बोल के
Paras Nath Jha
अब किसी से कोई शिकायत नही रही
अब किसी से कोई शिकायत नही रही
ruby kumari
मैं ज़िंदगी भर तलाशती रही,
मैं ज़िंदगी भर तलाशती रही,
लक्ष्मी सिंह
अनपढ़ दिखे समाज, बोलिए क्या स्वतंत्र हम
अनपढ़ दिखे समाज, बोलिए क्या स्वतंत्र हम
Pt. Brajesh Kumar Nayak
कुदरत है बड़ी कारसाज
कुदरत है बड़ी कारसाज
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
मिसाल उन्हीं की बनती है,
मिसाल उन्हीं की बनती है,
Dr. Man Mohan Krishna
है खबर यहीं के तेरा इंतजार है
है खबर यहीं के तेरा इंतजार है
सिद्धार्थ गोरखपुरी
Loading...