आत्मग्लानि से मुक्ति
गर्मी की छुट्टियों के बाद युनिवर्सिटी खुली तो भरभरा कर जैसे लड़कियों का सोता फूट पड़ा ।
” वार्डन मैम पहले मेरे कमरे में किसी भी मौसी जी ( यहां काम करने वाली को सब इसी संबोधन से बुलाते थे ) को भेज दिजिए , हर लड़की वार्डन से यही कह रही थी । ”
” तुम सब मेरा दिमाग मत खाओ….रूम नम्बर के हिसाब से कमरा साफ होगा वार्डन ने अपना रौब दिखाया । ”
” ये क्या बात है मैम जो पहले आया उसका कमरा पहले और जो बाद में आया उसका बाद में , नही तो रूम नम्बर के हिसाब से तो पहले आने वाले बैठे रह जायेंगें । ”
” लड़कियों ने अपनी बात सही तरीके से रख दी । ”
” अच्छा ठीक है ये सब तुम लोग देखो और अपना – अपना कमरा साफ करवा लो । ”
” मैम मेरे कमरे में भी किसी को भेज दिजिए ये आवाज़ तेज़ तर्रार दिपिका की थी और साथ में उसकी रूम पार्टनर शिखा भी थी । ”
” वार्डन ने उसकी तरफ देखा और हॅंसीं ‘ तुम दोनों ही बची थी ‘ अच्छा जाओ किसी को भेजती हूॅं । ”
दिपिका और उसकी रूम पार्टनर शिखा कमरे में पहुॅंचे ही थे की देखा दस साल की छोटी लड़की आकर बोली ‘ वार्डन साहिब भेजी हैं कमरा साफ करने के लिए ‘ ।
दोनों रूम पार्टनर ने एक दूसरे का मुॅंह देखा तभी दिपिका बोल पड़ी ‘ तुम…तुम कमरा साफ करोगी बित्ते भर की ? तुम्हारी उम्र की तो हमारी छोटी बहन है ‘ ।
” नाम क्या है तुम्हारा ? ”
” लक्षमी…दाॅंत निकालते हुए बोली । ”
दोनों सोचने लगीं…शिखा बोली ‘ अगर हमने इससे कमरा साफ नही करवाया और वापस भेजा तो वार्डन इसको दूसरे और कमरे साफ करने भेज देगी ‘ ।
” ऐसा करो ‘ लक्षमी ‘ तुम चुपचाप एक तरफ कमरे में बैठो और कमरा तुम्हारी बड़ी दीदी लोग साफ करेगीं… दिपिका ने बड़े प्यार से कहा । ”
बैग में से एक बिस्किट का पैकेट निकाल ‘ लक्षमी को
भोग लगा ‘ दिपिका ने झाड़ू और शिखा ने झाड़न उठा लिया ।
” ई बिस्कुट बहुत अच्छा है ” कहती हुई लक्षमी भोग खाने लगी और दोनों आत्मग्लानि से मुक्त हो तन्मयता के साथ कमरा साफ करने लगीं ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 15/09/2021 )