आत्मकथ्य
आत्मकथ्य
मैं
एक घड़ा
कच्ची मिट्टी से बना
कुम्हार की कला का नतीजा
उत्कृष्टता की चरमपरकाष्ठा।
कितना
समय लगाया
उसने मिट्टी को मिलाया
घंटों हाथ पैरों से रौंदकर मिट्टी को
कोमल घड़ने लायक बनाया।
कुम्हार ने
अपने हाथ
कोमल थापों से
मुझे मटके का रुप दिया
भट्टी में पका सशक्त किया
अपना दिन रात मुझ पर लगाया
गरमी में ठंडक देने लायक बनाया।
पर
एक घड़ा
खरीदने में भी
वाह! रे मानव वाह!
मोल भाव कर डाला
कुम्हार की मेहनत को
मिट्टी में मिला मिटा डाला।
नीरजा शर्मा