आत्मकथा
न ये कविता है न ये कहानी है ,
ये सच्चाई है कुछ साल पुरानी है ,,
मै कन्जूश हू ,
बहुत मक्खी चूस हू ,,
कल तक गरीब था ,
अपनों के करीब था ,,
आज मै मजबूर हू ,
अपनों से दूर हू ,,
मेहनत से उठा हु ,
लगन से जुटा हु ,,
एक एक रुपय को तरशा हू ,
कल तक चाक़ू था आज फरशा हू ,,
मंदिर में माथा हमेशा झुकाता हू ,
अपनी कहानी मै तुमको सुनाता हू ,,
अपनों ने मारा था ,
गाँव में आवारा था ,,
घर से भगा था ,
स्टेसन में जगा था ,,
इस अनजान शहर में ,
मै भटकू दोपहर में ,,
न कोई सहारा था ,
न कोई हमारा था ,,
दिनभर भटकता था ,
बोलने में अटकता था ,,
बारवी फेल था ,
ये ऐसा खेल था ,,
जो समझ में न आता था ,,
एक दो दिन कुछ भी न खाता था ,,
एक दिन मै भूखा सड़क में पड़ा था ,
सिकोटी डारेक्टर अकड़ के खड़ा था ,,
उसने फिर पूछा बेटा कैसे पड़े हो ,
ऊपर से नीचे तक पतझड़ सा झड़े हो ,,
मैंने फिर अपनी कहानी सुनाई ,
तुरतै बिठाकर वो गाड़ी घुमाई ,,
ले जाकर पटका सनराईस टावर ,
बोला की देखो यहाँ तुम्हारा है पावर ,,
गेट में तुम बैठो निगरानी भी करना ,
मोटर चलाके तुम पानी भी भरना ,,
इतने में धीरे से बर्दी निकाला ,
जल्दी पहन ले तू मेरे प्यारे लाला ,,
डर के मै जल्दी से सैल्ट को लटकाया ,
इतनी बड़ी थी नीचे से पैन्ट को हटाया ,,
हुई सुबह तो एक सेठ हम पे भड़का ,
पता नहीं कहा से आया ये लड़का ,,
सोला साल का छोरा न मूछे न दाढ़ी ,
डारेक्टर भी साले ऐसे रखते अनाड़ी ,.
सोया था नीचे भला चलाया न गाड़ी ,
हमें रोते देख समझाई उसकी लाड़ी ,,
फोन लगा के डारेक्टर को चमकाया ,
किसी तरह से वो दो दिन धकाया ,,
तीसरे दिन बोला तू ले अपने पैसे ,
कुछ भी तू कर या रह चाहे जैसे ,,
मैंने कहा अंकल अपना कोई नहीं है ,
दश दिन से ये आँखे भी सोई नहीं है ,,
मैंने कसम खा के घर से हु निकला ,
चाहे मुझे जाना पड़े पूना या शिमला ,,
इतना वो सुनकर उसका दिल पिघला ,,
डाकूमेन्ट में क्या है जल्दी से दिखला ,,
दश वी की अन्कशूची मै उसको दिखाया ,
हमें पैसे कमाने के तरीके सिखाया ,,
रात में मै ड्यूटी सिकोटी की करता ,
दिन में ऑफिश की नोकरी भी करता ,,
ऐसे ही दोस्तों मै एक साल कमाया ,
मार्केट में अपनी एक इमेज बनाया ,,
पैसे जुड़े थे अड़तालिस हजार ,
उगली घुमाता उनमे बार बार ,,
सपना था मेरा खरीदेगे कार ,
मित्रों अब होगा ये सपना साकार ,,
गया घर जब अपने सब मिलने को आये ,
बैठ कर फिर उनको सच्चाई बतायें ,,
अब मै बिलकुल बदल चुका था ,
घर में केवल दश दिन रुका था ,,
साथ में अपने तीनो भाई को लाया ,
इंदौर में रहकर मै उनको पढ़ाया ,,
भाई ने मेरा प्राइवेट फॉर्म डाला ,
मै बारवी पास हुआ कालेज कर डाला ,,
दुसरे भाई का एअर फ़ोर्स में है जॉब ,
अपना भी थोड़ा सा पूरा हुआ ख्वाब ,,
तीसरे का विजनेस चौथा आर्मी में है ,
हम चारों भाई मिलजुल ख़ुशी में है ,,
फ़िलहाल सि.ए.ऑफिस में असिस्टैंट हू ,
कई साल से एक जगह परमानेन्ट हू ,,
दोस्तों मै अपनी मजाक उड़ा रहा हू ,
लगे हुए दामन में दाग छुड़ा रहा हू ,,
कवि आशीष तिवारी जुगनू
इंदौर म.प्र .
09200573071 / 08871887126