आते हैं खयालों में
आते हैं खयालों में अक्सर मेरे महबूब
मिलते न हक़ीकत में क्योंकर मेरे महबूब
रहना हो गवारा उन्हें मेरे दिल में
ऐ काश हो जाएं कभी बेघर मेरे महबूब
दरिया मेरी आँखों से यह सोंच के बहता है
समझा था वफ़ा के हैं सागर मेरे महबूब
वो मेरे बुरे वक्त की खबर पर नहीं पिघले
मेरा यकीं सलामत कि हैं पत्थर मेरे महबूब