आती है
जुबां! बेज़ुबाँ होकर, कागदी आती है
एक अरसे के बाद सादगी आती है
सीने में महज दिल का धड़कना तो जिंदादिली नहीं,
दुनिया देखकर भी जिन्दगी आती है
मैं जिंदा हूँ ये बात मेरे दुश्मन को खटकती है
प्रेम – वरेम वो क्या जाने उसे दरिंदगी आती है
हवा रुख बदल कर जबसे मेरी कायल हुई
बदन के जर्रे जर्रे में बस ताजगी आती है
सुकूँ को पहचान पाना इतना भी आसान नहीं
दिलो – दिमाग़ में ये बात एकबारगी आती है
मुझे यकीन है के तुझे कुछ भी यकीन नहीं
बात जब ये ही है तो बातों में आवारगी आती है
-सिद्धार्थ गोरखपुरी