आतिशे उल्फ़त को हर कोई हवा देने लगे
बोसा-ओ-गुल फोन पर अब रोज़हा देने लगे
हाए यूँ उश्शाक़ माशूकः को क्या देने लगे
ख़ैर जब जब मैं रक़ीबों की मनाया मुझको तब
गालियाँ वे सह्न पर मेरे ही आ देने लगे
आशियाँ दिल का मेरे बच पाएगा किस तर्ह गर
आतिशे उल्फ़त को हर कोई हवा देने लगे
जाने जाँ तेरे क़सीदे में हुए जो भी अश्आर
मिलके सब ग़ज़ले मुक़म्मल का मज़ा देने लगे
ढूँढने ग़ाफ़िल को अपने था चला पर मुझको सब
कैसी चालाकी से मेरा ही पता देने लगे
-‘ग़ाफ़िल’