“आतिशे-इश्क़” ग़ज़ल
बात निकलेगी तो फिर, दूर तलक जाएगी,
उनके कानों मेँ भी, कभी तो भनक जाएगी।
मेरे अल्फ़ाज़ से, आती है उन्हीं की ख़ुशबू,
लिखूँ ग़ज़ल अगर, तो वो भी, महक जाएगी।
सुना है, जागते हैं, वो भी, देर तक शब को,
चूड़ियों की, मिरे घर तक भी, खनक जाएगी।
क्या हुआ फाड़ जो देते हैं वो, मिरे ख़त को,
हवा के सँग, मिरे भावों की, सनद जाएगी।
अपनी पहचान, छुपा जाऊँगा चलते-चलते,
रहगुज़र ख़ुद ही वर्ना, राह भटक जाएगी।
लब न छू जाएँ नदी से, मैं जब पियूँ पानी,
मुझे है डर, कि कहीं वो भी बहक जाएगी।
आज बुलबुल भी कुछ ख़ामोश सी दिखी क्यूँ है,
मिरे अशआर, जो सुन ले, तो चहक जाएगी l
नाम उनका, नहीं लाऊँगा, लबों पर वर्ना,
जहान भर को, ये भी बात, खटक जाएगी l
उनसे कह दो कि गुफ़्तगू कभी कर लें “आशा”,
आतिशे-इश्क़ भी सीने मेँ, दहक जाएगी।
आतिशे-इश्क़ # प्रेमाग्नि, fire of love
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