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3 Sep 2020 · 3 min read

आतंकवादीयों , अलगाववादीयों और अपराधियों को टीवी चैनलों की सहानुभुति और मिडिया ट्रायल का सच

पिछले कुछ वर्षो से हम देख रहें है कि कुछ टीवी चैनल आतंकवादीयों , अलगाववादीयों और अपराधियों को पत्रकारिता के नाम पर अपना मंच प्रदान करते आए हैं और न शिर्फ मंच प्रदान करते हैं बल्कि बाकायदा उनका महिमामंडन भी करते है राष्ट की जन भावना के साथ खिलवाड़ करते आए हैं तथा अपराधियों के अपराथ को सामान्यीकृत करने का प्रयास करते आए हैं और इसका हालिया उदाहरण सुशांत सिंह राजपुत के केस में देखने को मिला जब एक तथाकथित बडे़ चैनल ने इस केस कि मुख्य आरोपी को बैठाकर हास्यास्पद सवाल पुछे और मुख्य आरोपी को पुरा समय दिया जिससे वह पिड़ित पर ही संगीन आरोप लगा सके और उसका चरित्र हनन कर सके और न सिर्फ पिड़ित बल्की उसके पुरे परीवार पर आरोप लगा सके और उनका भी चरित्र हनन कर सके | यह बहुत दुर्भाग्यपुर्ण है |

अब यदी हम इस बारे में और चर्चा करें तो कुछ ही दिन पहले दिल्ली दंगे के मुख्य आरोपियों में से एक को उसी तथाकथित बड़े टीवी चैनल ने स्थान दिया था यही नहीं इसी टीवी चैनल ने कश्मीर में भारतीय सेना द्वारा मारे गए एक आतंकवादी के बारे में बताया था की वह गणित का शिक्षक था और भी कई घटनाएं बताकर उसके आतंकवादी होने के गुनाह को सामान्यीकृत करने का प्रयास किया | मुझे याद है कि जब निर्भया के दोषियों को फांसी पर चढ़ाया गया था तो एक इसी तरह के न्युज चैनल और उसके पत्रकार ने अपराधियों की रात से लेकर सुबह फांसी पर चढने तक की कहानी बताई थी जिसमें वह यही भी बता रहा था की किस तरह से फांसी वाली रात को किसने खाना खाया था नही खाया था या उन्हे फांसी पर चढा़ने ले जाते वक्त वो फुट फुट कर रो रहे थे | यहां मेरा सवाल इन टीवी चैनलों से ये है कि आप ये बताकर साबित क्या करना चाहते है कि देश उन बलात्कारियों कि फांसी पर रोए या न्यायालय नें उन्हें फांसी कि सजा देकर कोई गुनाह कर दिया है | मुझे यह लगता है कि इन टीवी चैनलों से ऐसे सवाल पुछे जाने चाहिए |

इसलिए अब समय आ गया है कि इन टीवी चैनलों का पुर्णतय बहिस्कार करके इन्हे सत्य से और राष्ट की जन भावना से अवगत कराया जाए | वरना ये टी आर पी के भुखे चैनल इसी तरह से सत्य को एवं राष्ट को हानी पहुचाते रहेंगे | सच तो ये है कि ऐसे चैनल केवल अपनी वामपंथी विचारधार और अपनी टी आर पी के लिए पत्रकारिता के नाम पर केवल अपना हित साध रहे हैं| | यही वजह है कि पहले सुशांत की कथित हत्या को आत्महत्या कहकर छोड़ देने वाले लोग आज जब एक चैनल ने अपनी मेंहनत , लगन और सत्य के दम पर जब एक मुहिम बना दी है तो इसे मिडिया ट्रायल कहकर आलोचना कर रहें है |

जिस तरह से घने अंधेरे को रोशनी की एक किरण चिर देती है उसी तरह से टीवी पत्रकारिता में भी कुछ चैनल ऐसे है जो रोशनी की वही किरण हैं और वो दिन रात मेहनत करके सच दिखाने कि कोशिश कर रहे हैं तो उन पर ये आरोप लगाया जा रहा है कि वह मिडिया ट्रायल कर रहे है | इन आरोपों को इस बात से समझिए कि ये वही लोंग हैं जो आतंतवादियों , अलगाववादियों और कातिलों के टीवी इंटरव्यू को सोसल मिडिया पर यह कहते हुए साझा करते हैं कि यही तो अभिव्यक्ति की असली स्वतंत्रता है |

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 2 Comments · 545 Views
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