* आडे तिरछे अनुप्राण *
डा० अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
*आडे तिरछे अनुप्राण *
भिन्न भिन्न आकारों के विचारों के स्वप्न खिले
कुछ इस तन के कुछ उस तन के हैं रुप लिए
तुमने मुझको आवाज लगाई बिन बोले
मैने प्रति उत्तर दे डाला बिन मूहं खोले
तेरे मन से मेरे मन तक एक राह बनी
जिस पर चल कर हम दोनो ने फिर सृजन किया
भिन्न भिन्न आकारों के विचारों के स्वप्न खिले
कुछ इस तन के कुछ उस तन के हैं रुप लिए
सजनी सजना से भावों को अन्तर्मन के आकारों को
कुछ पके यहाँ कुछ नहीं पके कुछ रह गए अधपके
लेकिन कुछ तो निर्माण हुआ तेरे तन से मेरे तन से
परिपक्व यहाँ तो कोई नही इस सृष्टि में
सबकी अपनी अपनी सीमायें हैं
जिसको जितना आया उसने उतना ही कर पाया
सब के बस में सब कुछ होता ऐसा तो कोई हुआ नही
भिन्न भिन्न आकारों के विचारों के स्वप्न खिले
कुछ इस तन के कुछ उस तन के हैं रुप लिए
तुमने मुझको आवाज लगाई बिन बोले
मैने प्रति उत्तर दे डाला बिन मूहं खोले