आज संवेदन हीन—–हुआ!
आज संवेदन हीन—–हुआ इंसान। फिर भी बनता बहुत महान।चलै ठगों के पीछे पीछे।करै नही पहचान।आज संवेदन हीन हुआ इंसान। दुहाई देता फिरें,हम है बुद्धि मान।आज कितना भी सिखाओ, कितना भी समझाओ, और कितना भी पढ़ाओ।पर! कुछ नहीं समझ रहा है। अपने मन की सुन रहा है।बन हुआ पिछलगुआ करै न अनुसंधान।आज संवेदन हीन हुआ इंसान। कर्म क्या है, धर्म क्या है। तेरी मंजिल है क्या। बगैर पता के चल रहा।बना हुआ अनजान।आज संवेदन हीन हुआ इंसान।