आज श्राद्ध श्रद्धा है या आडम्बर है –आर के रस्तोगी
जीवन में अजीब अचम्भा देखा
जीते जी आदमी को भूखा देखा
मरने के बाद उसको खाते देखा
सदियों से चलती इस रीति को देखा
श्राद्ध के नाम पर इस श्रद्धा को देखा
देख रहे है आज उसे अनदेखा देखा
वर्तमान की चिंता आज नहीं कर रहा
भविष्य की चिंता आज किये जा रहा
मानव किस मार्ग पर आज चल रहा
चल कर भी उसे पता नहीं चल रहा
सदियों से निभाता चला वह आ रहा
इसी को श्राद्ध का नाम दिया जा रहा
घर घर में चल रही ये कहानी है
कोई जानी है कोई अनजानी है
पर ये सब की जानी पहचानी है
यह श्रद्धा है, या कोई नादानी है
इस नादानी को अब बदलनी है
श्राद्ध को श्रद्धा में ही बदलनी है
अगर आज श्राद्ध श्रद्धा में बदल जायेगा
तो मानव का स्वरूप ही बदल जायेगा
दुःख ,सुख में परिवर्तित हो जायेगा
आडम्बरो का विनाश ही हो जायेगा
आओ आज श्राद्ध को श्रद्धा में बदले हम
पुरानी लकीरों को नई लकीरों में बदले हम
आर के रस्तोगी