उसे सजा जरूर दिलवाना
माँ तेरी बूढ़ी हो गई तो,
उसको घर से निकाला ।
क्या तुम उसका भुल गया,
वो प्रेम का पहला निवाला ।।
जिसने तुझको जन्म दिया है,
क्यों उसका भूल गया तू कर्म ।
अब तेरे जैसे बेटों के चलते,
श्रवण को भी लगता है शर्म ।।
तेरी हाथों को, पकड़ के जिसने,
तुझको चलना सिखाया ।
तुमने उसे आज, अपने हाथों से,
कैसा दिन दिखाया ।।
जरा सी चोट लगने पर,
तुम्हें सीने से लगायी ।
उसी हाथों से, माँ ने आज,
इतनी थप्पड़ क्यों खायी ।।
माँ ने तुझको बेटा समझके,
बहुत ही प्यार किया ।
क्या गलती हो गई उस माँ से, जो तुमने,
उसके हृदय को तार – तार किया ।।
माँ तेरी बूढ़ी हो गई तो,
उसको घर से निकाला ।
क्या तुम उसका भुल गया,
वो प्रेम का पहला निवाला ।।
जिसने तुझको जन्म दिया है,
क्यों उसका भूल गया तू कर्म ।
अब तेरे जैसे बेटों के चलते,
श्रवण को भी लगता है शर्म ।।
अपना कर्म भूल गया तू,
किसके चक्कर में पड़के ।
माँ का कलेजा तेरे कारण,
आज बहुत ही धड़के ।।
यहाँ खुद भुखी, रहके भी जो,
बच्चों को खाना खिलाई ।
इस धरती पर, सच्चे मन से,
माँ वही कहलाई ।।
ऐसी माँ को तुमने आज,
किया है बहुत लाचार ।
मर गया क्या, तेरे अंदर से,
वो मानवता का विचार ।।
जिसने तुमको खुन से सींचा,
तुम उस माँ पर, क्यों हो गया बेरहम ।
तुझको और तेरी बीवी को,
क्या बिल्कुल न लगता शर्म ।।
उस माँ का दिल भी,
सोचता होगा, कैसा है संसार ।
जिसको तन से, जन्म दिया मैं,
वो करता ना मुझसे प्यार ।।
उस माँ के पीट जाने पर,
कवि का, दिल बहुत गरमाया ।
तेरे जैसे बेटों के चलते,
आज, श्रवण भी शरमाया ।।
हे भगवन तुम,
ऐसे बेटे-बेटी को, क्यों देते हो जन्म ।
माँ ने बहुत ही प्यार किया है,
फिर क्यों उसकी, आँखें हुई है नम ।।
कवि पूछता है,
चुप रहता है, क्यों सारा जमाना ।
श्रवण कहता है, ऐसी घटना किया हो जिसने,
उसे सजा जरूर दिलवाना ।।
कवि :- मनमोहन कृष्ण
तारीख :- 19/09/2020
समय :- 12 : 56 ( रात्रि )