आज शरद की पूरनमासी…
लो फिर आई
शरद की पूरनमासी !
रात कोजागरी
पूर्ण कलेवर चाँद
विगसा
निरभ्र गगन में
धारे सोलह कलाएँ
देखो तो
कैसा दिप रहा कलाधर !
निहारते छटा सितारे
टकटकी बाँधे एकटक
आसमां चकाचक
धवल चाँदनी छिटकी
झरता अमृत झर-झर !
नहा जुन्हाई में
गुराई निशा
निखरे अंग-अंग
गर्वीली नार-सी
मदमाती उन्मादिनी !
नतनयना,
कुसुमित यौवना
निहार
प्रिय-छवि मोहिनी
फूली न समाती
यामिनी !
दमक उठा तन-मन
दिन भर के
आतप से
सँवलाई निशा का !
सद्यस्नाता,
दुग्ध-धवल
तारों जड़ित
रुपहले परिधान सजी
चहक रही अब
मदभरी बाबरी !
देख
रुत अनुकूल
चली रिझाने
प्रिय को
रत्न-खचित
ओढ़े दुकूल चाँदनी
श्वेताभिसारिका
मानिनी !
-© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
“साहित्य सुरभि” से