आज रात
आज रात
आज रात
चांद पर खड़े होकर
कोई डाल रहा है डग्गी
झिलमिल सितारों पर …
आज रात
कोई समेंट रहा है
सारी रोशनी
अपनी झोली में …
आज रात
कोई डाल रहा है विघ्न
नन्हे सितारों की
कबड्डी पर …
आज रात
खाली हो गया
सारा आसमां
रात ढ़लने से पहले ही …
आज रात
किसी लुटेरे ने
कर लिया अपना कब्जा
सारी रोशनी पर …
सोचती हूँ
क्या जवाब दुंगी
सुबह के राजा सूर्य को
इस काली रात की
मैं ही हूँ एक मात्र गवाह
दिन की अदालत में ….
– क्षमा ऊर्मिला