गम के मारों को नींद
आज यूं गम के मारों को नींद आ गई,
जैसे जलते शरारों को नींद आ गई।
थे ख़ज़ां में यही होशियार-ए-चमन,
फूल चमके तो खारों को नींद आ गई।
तुमने नज़रें उठाईं सर-ए-बज़्म जब,
एक पल में हजारों को नींद आ गई।
वो जो गुलशन में आए मचलते हुए,
मुस्कुराती बहारों को नींद आ गई।
चलती देखी है ‘अरशद” इक ऐसी हवा,
जिससे दिल के शरारों को नींद आ गई।
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शब्दार्थ… शरारों = अंगारों, खजां = पतझड़, चमन/गुलशन = उपवन, खारों = कांटों, बज़्म = महफ़िल, बहार = बसंत।
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– अरशद रसूल