आज मैं एक नया गीत लिखता हूँ।
आज मैं एक नया गीत लिखता हूँ।
दो आत्माओं के मिलन का संगीत लिखता हूं।।
पहली बार तुम्हें देखा, तुम सितार सी लगी,
मेरे हृदय की वीणा के तार सी लगी।
दूसरी बार तुम्हें देखा तो देखता रह गया,
कभी उषा की पहली किरण,
तो कभी संगीत के झंकार सी लगी।
तुम्हारे आगमन से हृदय में उठा प्रीत लिखता हूं,
आज मैं ……………. लिखता हूं।।
जब भी तुम्हें देखा मैं खोता चला गया,
जितना तुम्हें जाना, तुम्हारा होता चला गया।
कभी सुबह–ए–बनारस,
कभी शाम–ए– अवध सी लगी,
कभी गंगा – यमुना के संगम सी लगी।
तुम्हारे मिलन की मैं नई रीत लिखता हूँ,
अपने मन की व्यथा की प्रीत लिखता हूं,
आज मैं…..लिखता हूँ, दो आत्माओं….. हूं।।
©अभिषेक पाण्डेय अभि