आज बच्चों के हथेली पर किलकते फोन हैं।
——-(गीतिका छंद)——-
आज बच्चों के हथेली पर किलकते फोन हैं।
बेधड़क ही दे रहे माता -पिता वे कौन हैं?
कौन है जो दे रहे परिणाम कुछ सोचे बिना?
सौंप देते हैं हरे – हाथों स्वयं ही पूतना । १।
कह रहे हैं बाल – बच्चे आज बूढ़े तात से।
तात! तुम भी नेत्र का दो दान अपने हाथ से।
सीख लो अखबार की तुम ऊब यूँ ही झेलना ।
सीख लो अथवा हमीं से वीडियोगेम्स् खेलना। २ ।
आह इन क्रीड़ास्थलों में दौड़ते कुछ लोग हैं।
रोगपीड़ित, स्थूल या व्यायामशील निरोग है।
दीखती है पर नहीं एकत्र बालक- टोलियां ।
अवश्य ही होंगे ‘घरों में वे चलाते गोलियां’ | ३ |
-सत्यम प्रकाश ‘ऋतुपर्ण’
(दि०-२८-०१-२२)