आज फिर
रात को देकर चले हैं, चंद सपने आज फिर।
कुछ महकते याद आये, मुझको अपने आज फिर।
मैं अकेले क्या चलूँगी, रुक गई इक मोड़ पर।
लौट कर आओ कहीं से, साथ चलने आज फिर।
सुरमई पुरवाई के संग, बीत जाना था जिन्हें,
कुछ मोहब्बत के चले थे, खत सुलगने आज फिर।
झूठ औ सच खुल गए तो, रंग बदलेंगे कई,
हाथ से कसमों के पन्नें, हैं सरकने आज फिर।
उँगलियों संग साज भी, टूटे मिले हैं किसलिए
थे चले महफिल सजा वो, याद करने आज फिर
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ