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21 Jan 2017 · 1 min read

आज फिर से भूख की और रोटियों की बात हो

ग़ज़ल

आज फिर से भूख की और रोटियों की बात हो
खेत से रूठे हुए सब मोतियों की बात हो

जिनसे तय था ये अँधेरे दूर होंगे गाँव के
अब अंधेरों से कहो उन सब दियों की बात हो

इक नए युग में हमें तो लेके जाना था तुम्हें
इस समुन्दर में कहीं तो कश्तियों की बात हो

जो तुम्हारी याद लेकर आ गई थीं एक दिन
धूप में जलती हुई उन सर्दियों की बात हो

जिनको तुमने था उजाड़ा कल तरक्की के लिए
आज फिर उजड़ी हुई उन बस्तियों की बात हो

ज़िक्र जब भी जंगलों का, आंसुओं का, आए तो
पेड़ से टूटी हुई सब पत्तियों की बात हो

-डॉ. राकेश जोशी

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