आज फिर से गर्दिशों का आलम है
आज फिर से गर्दिशों का आलम है
वक़्त की तन्हाई में
जिंदगी का आज फिर मातम है
उठ रहे बेशुमार हाथ आज दुवाओं में
कल तक जो थे इस रूह से बेखबर ,
बोल होते थे जुबा पर कल तक गीले और शिकवे के ,
आज फिर वो तारीफों के पूल बांध रहे ,
अजीब सा फलसफा है जिंदगी का
मुर्दा अकड़ जाता है खुद की तारीफों से ,
और जिन्दा, लाश बन जाता है,
खुद के गीले शिकवे से ,
आज पैमाना कुछ यु है जिंदगी का
की कंधे हजार तैयार खड़े है सहादत में आज ,
पर पूरी जिंदगी मोहताज रहा दर्द में एक हाथ को
विदा करने को मुझे आज ,
आंसुओ का सैलाब लिए यह आलम है ,
कल तक बेखबर थे जो मेरी रेहनुमायियो में ..