आज फिर धुंधले हुऐ आईने समाज के.
आज फिर धुंधले हुऐ,
आईने समाज के….
प्रेम प्यार सहयोग सहजता
हैं गहने मानवीय मूल्यों में …
झलकते थे दिखते थे अंधकार में.
एकजुटता, धर्म-निरपेक्षता, संप्रभुता.
आज फिर अखंडता का द्योतक भारत.
अनेकता में एकता वाला भारत..
सिक्के पूरे को छोड़ रहा .
आज फिर धुंधले हुये.
आईने समाज के.
कमियाँ छुपी रही
नैतिकता ढकती रही.
बारुद बना गुब्बार
धर्म की गलत शिक्षा.
दोगले चित्रण करने लगी.
मुँह में राम बगल में छुरी .
कहावत सिद्ध होने लगी.
धर्म चालाक शातिर चोर कट्टर बनाता नहीं.
कमी बीज़ में है धरा खुद पर लेती नहीं.
निम्ब,करेला और कड़वी वाणी औषधि है.
भोज्य पदार्थ इनका स्थान ले सकते नहीं.
तन मैला मन गंगा सार्थकता
तन गंगा मन मैला गौण भला .
डॉ महेन्द्र सिंह हंस
तन भी गंगा, मन भी गंगा.
जिनके कर्म नैसर्गिक सारगर्भित है.
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आज फिर धुंधले हुऐ.
आईने समाज के.
क्योंकि कुछ अंधभक्त सम्मोहित व्यक्ति
हमारे समाज के हिस्से हैं.।
जो समाज में भंगुर है.
न तपते हैं ..न ढलते है.
अशुद्धि का रुप हैं !!