आज फिर खिड़की पर बारिश हो रही है।
एक प्रेम गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ
आज फिर खिड़की पर बारिश हो रही है ।
ख़त तुम्हें लिखने की ख्वाहिश हो रही है ।।
एक हवा का झोंका बनके तुम चले आओ ।
मैं बनुॅ बादल कोई मुझको उड़ा जाओ ।।
फूलों से कलियों से भौरों से चलो बातें करें ।
भींगी भींगी रातों में आओ मुलाकातें करें ।।
मिलके भिंगेंगे चलो दिल से गुजारिस हो रही है ।
आज फिर खिड़की पर बारिश हो रही है ।।1।।
तुम हो, मैं हूँ और है बरसात की मदहोशियाॅ ।
डालकर आँखों में आँखें हम सुनें खामोशियाॅ ।।
उँगलियों के छोर को महसूस करती उँगलियाॅ।
मधु तेरे बालों से ले मुझपर उड़ाती तितलियाँ
लगता है हमको मिलाने की सिफारिश हो रही है।
आज फिर खिड़की पर बारिश हो रही है ।।2।।
तेरी जुल्फों की तरह काली घटाएँ छा रहीं हैं ।
देखो कैसे घुमड़ कर ये प्रेम रस बरसा रहीं हैं ।।
कह रहीं हैं क्यों विरह की वेदना में जी रहे हो ।
नाम लेकर के तुम्हारा प्रेम गीत सुना रहीं हैं ।।
बादलों के बीच जैसे कोई साजिश हो रही है ।
आज फिर खिड़की पर बारिश हो रही है ।।3।।