*आज फिर उन्हीं ख्यालों में हूँ*
आज फिर उन्हीं ख्यालों में हूँ
कभी कभी गुजरे हुए जमाने को ,
अपने जहन में याद करके ,
न जाने क्यों पुरानी यादों में ,
अक्सर खो जाया करती हूँ।
आज फिर उन्हीं ख्यालों में हूँ
खुशनसीब समझती हूँ ,
अपने जन्म पैदाइश को ,
पिछले जन्म के पुण्य कर्मों को ,
माता पिता से मिले हुए ,
अच्छे संस्कारों को ,
आजमाते हुए ,
गुमसुम खोई हुई सी रहती हूँ।
आज फिर उन्हीं ख्यालों में हूँ
बीते हुए हसीन उन लम्हों को ,
सुनहरी यादों में समेटे हुए ,
खुशियों की सौगात लिए ,
बिछुड़े हुए परिजनों को ,
यादों में संजोए हुए ,
आज फिर उन्हीं ख्यालों में हूँ
बरसों पहले जो उम्मीद जताई ,
बड़े बुजुर्गों की दुआओ का असर ,
स्नेहिल स्वजनों की शुभ कामनाएं ,
सारी बातें मिलजुलकर ही ,
आज सफल जीवन की ओर ,
मुड़कर देखा तो अपनी ही ,
कर्मो की परछाई नजर आने लगी ,
आज फिर उन्हीं ख्यालों में हूँ
राह चलते हुए जो पीछे छूट गया ,
उन्हीं राहों में निशानी छोड़ गए ,
नक्शे कदम पीढ़ियाँ उठा गए ,
वही तकदीर बदल गई है।
ख्यालों में जो बुना था तस्वीर ,
हकीकत में वो सामने आ गई है।
आज फिर उन्हीं ख्यालों में हूँ
खोई खोई हुई सी रहती थी,
अब नए सिरे से स्वप्नों को ,
जमाने के हिसाब से बदलती ,
परिस्थितियों में ढल रही हूँ।
मुकद्दर में जो लिखा हुआ है,
वही भाग्य आजमा रही हूँ।
आज फिर उन्हीं ख्यालों में हूँ
शशिकला व्यास✍️