आज फ़िर कोई
आज फ़िर कोई
जागा है रात भर
तकिए को भिगो कर
आंसुओ से
रोया है कोई रात भर
जख्म कोई खुरच सा गया
दर्द कोई फिर से हरा हुआ
लगता है आज रात भर
कोई सोया नहीं
करवटें बदलता रहा है रात भर
गुफ्तगू करता रहा
अंधेरों से आज स्याह रात में ,
रात भी थकने लगी
कौन है जो साथ दे रात रात भर,
आज लगता है
फ़िर कोई जागा है रात भर!!!!
हिमांशु Kulshrestha