आज नहीं तो कल होगा / (समकालीन गीत)
आँखों की जब
धुंध हटेगी,
नव चिंतन की
कली खिलेगी,
जो है आज
गली का कीचड़
वही कमल का दल होगा,
आज नहीं, तो कल होगा ।
झरना होगा
ताल भी होगा
और ख़ुशी का फब्बारा,
डोर भी होगी
हवा भी होगी
और मस्त-सा गुब्बारा ।
सीध नाक की
लेकर चलना
पीछे मत मुड़ना प्यारे,
धरती-धरती
बढ़ते रहना
नभ में मत उड़ना प्यारे ।
जो है आज
धूल जैसा क्षण
वही सुनहरा पल होगा ।
आज नहीं तो कल होगा ।
बातें होंगीं
राते होंगीं
और भोर का उजियारा,
धरती होगी
खेती होगी
और धान का भण्डारा ।
ख़ुश रहना
अपनी सीमा में
मत फैला तू आडम्बर,
जैसा है तू
वैसा ही दिख
कर अंतर्मन को बाहर ।
आज हाथ से
तट छूटा है
कल पाँवों में तल होगा ।
आज नहीं तो कल होगा ।
— ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी (रहली),सागर
मध्यप्रदेश ।